रविवार, 31 जुलाई 2016

नान्हे कहिनी-‘राष्ट्र के सेवक"

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ला श्रद्धासुमन भेंट करत उन्खर जयंती मा उन्खर नान्हे कहिनी ‘राष्ट्र का सेवक‘ के छत्तीसगढ़ी अनुवाद भेंट करत हंव -

मूल- लघु कहानी -‘राष्ट्र का सेवक‘-मुंशी प्रेमचंद
अनुवाद- नान्हे कहिनी-‘राष्ट्र के सेवक"- रमेश चौहान

राष्ट्र के सेवक हा कहिस- देश के मुक्ति के एके उपाय हे अउ वो हे ओ मनखे के संग जेला नीच कहे गीस के संग भाईचारा रखना, परे-डरे के संग बराबरी के बर्ताव करना । दुनिया मा सबो भाई-भाई आंय । कोनो नीच नई हे कोनो ऊंच नई हे ।

दुनिया हा जय-जयकार करे लगीस - कतका बड़े सोच हे, कइसन लेवना कस करेजा हे!
ओखर सुघ्घर नोनी इन्दिरा हा जब सुनिस त संसो फिकर म डूब गय।

राष्ट्र के सेवक हा नीच जात के नौजवान ला बाही मा भर के छाती ले लगा लीस ।

दुनिया हा कहिस- ये देवता, भगवान आय, येही देश के पालनहार आय ।

इन्दिरा हा जब देखित त ओखर चेहरा चमके लगीस ।

राष्ट्र के सेवक नीच जात के नौजवान ला मन्दिर मा ले गय, देवता के दरश-परस कराइस अउ कहिस - हमर देवता गरीबी मा हवय, बेइजज्ती मा हवय, परे-डरे मा हवय ।

दुनिया हा कहिस- कतका सुघ्घर संत हिरदय के हवय! क्इसन ज्ञानी!

इन्दिरा हा देखीस अउ खिलखिलाये लगीस।

इन्दिरा राष्ट्र के सेवक के तीर म जाके कहे लगिस- ददा गो, मैं मोहन ले ब्याह करना चाहत हंव।

राष्ट्र के सेवक हा मया लगा के देखीस अउ पूछिस- ये मोहन कोन आंय, कोन मोहन ?

इन्दिरा हा खुशी-खुशी कहिस- मोहन ओही नौजवान आय, जेन ला तैं छाती म लगा के पोटारे रहें । जेला तैं मंदिर लेगे रहे । वो सच्चा, बहादुर अउ नेक हे।

राष्ट्र के सेवक हा अइसे देखिस जना-मना कोनो परलय आ जही का अउ अपन मुॅह ला पाछू कर लेइस ।




अनुवादक-रमेश चौहान