कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ला श्रद्धासुमन भेंट करत उन्खर जयंती मा उन्खर नान्हे कहिनी ‘राष्ट्र का सेवक‘ के छत्तीसगढ़ी अनुवाद भेंट करत हंव -
मूल- लघु कहानी -‘राष्ट्र का सेवक‘-मुंशी प्रेमचंद
अनुवाद- नान्हे कहिनी-‘राष्ट्र के सेवक"- रमेश चौहान
राष्ट्र के सेवक हा कहिस- देश के मुक्ति के एके उपाय हे अउ वो हे ओ मनखे के संग जेला नीच कहे गीस के संग भाईचारा रखना, परे-डरे के संग बराबरी के बर्ताव करना । दुनिया मा सबो भाई-भाई आंय । कोनो नीच नई हे कोनो ऊंच नई हे ।
दुनिया हा जय-जयकार करे लगीस - कतका बड़े सोच हे, कइसन लेवना कस करेजा हे!
ओखर सुघ्घर नोनी इन्दिरा हा जब सुनिस त संसो फिकर म डूब गय।
राष्ट्र के सेवक हा नीच जात के नौजवान ला बाही मा भर के छाती ले लगा लीस ।
दुनिया हा कहिस- ये देवता, भगवान आय, येही देश के पालनहार आय ।
इन्दिरा हा जब देखित त ओखर चेहरा चमके लगीस ।
राष्ट्र के सेवक नीच जात के नौजवान ला मन्दिर मा ले गय, देवता के दरश-परस कराइस अउ कहिस - हमर देवता गरीबी मा हवय, बेइजज्ती मा हवय, परे-डरे मा हवय ।
दुनिया हा कहिस- कतका सुघ्घर संत हिरदय के हवय! क्इसन ज्ञानी!
इन्दिरा हा देखीस अउ खिलखिलाये लगीस।
इन्दिरा राष्ट्र के सेवक के तीर म जाके कहे लगिस- ददा गो, मैं मोहन ले ब्याह करना चाहत हंव।
राष्ट्र के सेवक हा मया लगा के देखीस अउ पूछिस- ये मोहन कोन आंय, कोन मोहन ?
इन्दिरा हा खुशी-खुशी कहिस- मोहन ओही नौजवान आय, जेन ला तैं छाती म लगा के पोटारे रहें । जेला तैं मंदिर लेगे रहे । वो सच्चा, बहादुर अउ नेक हे।
राष्ट्र के सेवक हा अइसे देखिस जना-मना कोनो परलय आ जही का अउ अपन मुॅह ला पाछू कर लेइस ।
अनुवादक-रमेश चौहान
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